अलीगढ मीडिया डॉट कॉम अलीगढ़। खगोलीय घटनाएं सभी आयु वर्ग के लोगों को आकर्षित करती हैं और इस समय जब लॉक डाउन के कारण वातावरण और साफ़ हुआ है, एक अदभुत आतिशबाजी आकाशीय पिंडों के द्वारा “उल्का-बौछार” 16 अप्रैल से जारी है और 26 अप्रैल तक जारी रहेगी, जिसमें 22 अप्रैल को रात्रि 11 बजे से 23 अप्रैल की सुबह 05 बजे तक ,इस उल्का – बौछार के रोमांचक पलों का आनंदमय नज़ारा अनुभव किया जा सकता है।
हैरी एस्ट्रोनॉमी क्लब के सदस्यों की आवश्यक बैठक क्लब के अध्यक्ष संजय खत्री के आवास पर हुई, जिसमें क्लब के प्रवक्ता रंजन राना ने बताया कि उल्का टूटे हुए क्षुद्रग्रहों से बचे हुए धूमकेतु कणों और बिट्स से आते हैं। जब धूमकेतु सूर्य के चारों ओर आते हैं, तो वे अपने पीछे एक धूल भरा निशान छोड़ जाते हैं। हर साल पृथ्वी इन मलबे की निशान रूपी पगडंडियों से होकर गुजरती है, और तब धूल व बर्फ के टुकड़े हमारे वायुमंडल में प्रवेश करते हैं और 49 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ़्तार से आते हुए जलने लगते हैं। यही जलते हुए उल्का एक मनोहारी आतिशबाजी का कारण बनते हैं, इसे ही “उल्का-बौछार” कहते हैं।
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राना ने कहा कि अंतरिक्ष मलबे के टुकड़े जो कि हमारे वायुमंडल के साथ मिलकर Lyrids बनाने के लिए धूमकेतु C / 1861 G1 थैचर से उत्पन्न होते हैं। धूमकेतु थैचर की खोज 5 अप्रैल 1861 को वैज्ञानिक ए ई थैचर द्वारा की गई थी। राना ने कहा कि इस उल्का बौछार का नज़ारा 22 अप्रैल की रात्रि को हम सभी लोग अपने घरों की छतों से व नंगी आंखों से बिना किसी दूरबीन की सहायता से खुद देख सकते हैं। हमें केवल पूर्व दिशा की ओर पैर कर पीठ के बल लेटना है और 30 मिनट तक आकाश को निहारना है,जब हमारी आंखें अंधेरे में अनुकूल होते ही साफ साफ इस उल्का बौछार को एक घंटे में 15 से 20 बार देख सकेंगी।
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हैरी एस्ट्रोनॉमी क्लब के अध्यक्ष संजय खत्री ने बताया कि इस खगोलीय घटना को देखने के लिए श्रीलंका के सदस्य भी तैयारी कर रहे हैं। इस रोमांच का सभी विद्यार्थी, शिक्षक व अंतरिक्ष प्रेमी अपने अपने घरों पर अनुभव प्राप्त करें और हैरी एस्ट्रोनॉमी क्लब को #LYRAHARS पर वीडियो व फ़ोटो के माध्यम से भेजें तथा इनाम प्राप्त करें। इस अवसर पर जयकिशन दीक्षित, दुष्यन्त कुमार, मनीष सारस्वत, दीपक शर्मा , कारमिन, ऋषिका व संजीव खत्री उपस्थित रहे।