'पारंपरिक विरासत को संरक्षित करने में भारतीय दृश्य और प्रदर्शन कलाओं की भूमिका' विषय पर हुयी राष्ट्रीय संगोष्ठी

Aligarh Media Desk
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-मंगलायतन विश्वविद्यालय में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

अलीगढ मीडिया डिटिजल, अलीगढ़। मंगलायतन विश्वविद्यालय में भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर) द्वारा प्रायोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन दृश्य एवं कला विभाग द्वारा किया जा रहा है। पारंपरिक विरासत को संरक्षित करने में भारतीय दृश्य और प्रदर्शन कलाओं की भूमिका विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्देश्य कला, संस्कृति और समाज के बीच अंतर-संबंध को समझना और चर्चाओं के माध्यम से नवाचार को प्रोत्साहित करना है। संगोष्ठी में देशभर से कला विशेषज्ञ, शोधार्थी और विद्यार्थियों को आमंत्रित किया गया और उन्होंने अपने विचारों और अनुभवों को साझा किया।

कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों ने मां सरस्वती के सम्मुख दीप प्रज्वलित करके किया। छात्र समूह ने सरस्वती वंदना व कुलगीत की प्रस्तुति दी। कुलसचिव ब्रिगेडियर समरवीर सिंह ने अपने उद्बोधन के माध्यम से अतिथियों का स्वागत किया। समन्वयक डा. पूनम रानी ने संगोष्ठी के संबंध में विस्तार से अपने विचार रखे। मुख्य अतिथि कला भूषण पुरस्कार से सम्मानित व राजा मानसिंह तोमर संगीत विवि की पूर्व कुलपति प्रो. लवली शर्मा ने कहा कि हमारी भारतीय संस्कृति हमारे पास है वह दूसरी जगह बहुत मुश्किल मिलती है। राजस्थानी लोकगीत की पंक्ति सुनाते हुए कहा कि कला हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं, जो हमें कई संदेश भी देती हैं। हमारी संगीत कला में रोगों का भी निदान हैं। मुख्य वक्ता संगीत सेवा पुरस्कार से सम्मानित प्रो. पंकज माला शर्मा ने कहा कि जब दृष्टि पैदा होती है तब कला पैदा होती है। कला स्वयं में ही धरोहर है, इसका संरक्षण हमें निर्धारण करना होगा। हम उस देश के निवासी है जो सर्वप्रथम कला का दर्शक रहा है। उन्होंने वेद व यज्ञ का उदाहरण देते हुए भारतीय कला के इतिहास पर विस्तार से प्रकाश डाला और कहा कि पूर्ण से पूर्ण निकलने पर पूर्ण बच जाता है। कला ईश्वर का ही एक अंश है, कला के मूल में ही परमात्मा की खोज है। विशिष्ठ अतिथि मेवाड़ विश्वविद्यालय की निदेशक प्रो. चित्रलेखा सिंह ने कहा कि परंपरा तभी सुरक्षित रह सकती है जब हम धर्म को सुरक्षित रखेंगे। उन्होंने प्राचीन काल से चली आ रही परंपराओं का उदाहरण देते हुए बताया कि समस्त कलाओं का समावेश नारी के अंदर है। विशिष्ठ अतिथि राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता डा. रामबली प्रजापति ने कहा कि आज ललित कला अकादमियों की हालत ठीक नहीं है। देश में 10 हजार से अधिक तरह के पत्थर है, लेकिन इन्हें संरक्षित करने के लिए एक भी संग्रहालय नहीं है। कुलपति प्रो. पीके दशोरा ने कहा कि कला हमारी सांस्कृतिक व ऐतिहासिक विरासत हैं, कला के बिना मनुष्य जीवन पशु समान है।

आईसीएचआर के सह निदेशक डा. विनोद कुमार ने कहा कि आईसीएचआर इतिहास के क्षेत्र के साथ अन्य विषयों में अध्ययन के लिए फंड भी उपलब्ध कराता है। वे शोध इतिहास के पहलू पर केंद्रित होने चाहिए। डीन अकादमिक प्रो. राजीव शर्मा ने आभार व्यक्त किया। संचालन डा. स्वाति अग्रवाल ने किया। संयुक्त कुलसचिव प्रो. दिनेश शर्मा ने बताया कि इस प्रकार की संगोष्ठी न केवल छिपी हुई कला को उजागर करती हैं, अपितु उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में सहायक होती हैं। कार्यक्रम के दौरान ज्ञानवर्धक चार सत्रों में संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। ये सत्र अकादमिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, वहीं, व्यावहारिक दृष्टिकोण से भी पारंपरिक विरासत को संरक्षित करने में कलाओं को समझने का एक नया आयाम प्रदान कर रहे हैं। संगोष्ठी के दौरान विभिन्न तकनीकी सत्र भी आयोजित हो रहे हैं, जहां प्रतिभागी कला के विभिन्न तकनीकी पहलुओं को सीख सकेंगे। संगोष्ठी केे आयोजन में वित्त अधिकारी मनोज गुप्ता, एओ गोपाल राजपूत, प्रो. सिद्धार्थ जैन, प्रो. मनीषा शर्मा, प्रो. अनुराग शाक्य, डा. संतोष गौतम, डा. मनोज वार्ष्णेय, डा. नियति शर्मा, डा. अनुराधा यादव, डा. रामकृष्ण घोष, देवाशीष चक्रवर्ती, विलास फालके, अजय राठौर, उदय कुशवाह की टीम का सहयोग रहा।


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