अगर कोई संस्थान कानून के तहत बना है तो भी वह अल्पसंख्यक संस्थान होने का दावा कर सकता है: SC

Aligarh Media Desk
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अलीगढ मीडिया डिजिटल, दिल्ली /अलीगढ़| सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की संविधान पीठ ने अनुच्छेद 30 के मुताबिक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे के कायम रखने के मामले को नियमित पीठ के पास भेज दिया है|

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर दिए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साल 1967 में 'अजीज बाशा बनाम भारत गणराज्य' मामले में दिए अपने ही फैसले को पलट दिया है। कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई संस्थान कानून के तहत बना है तो भी वह अल्पसंख्यक संस्थान होने का दावा कर सकता है। अब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रहेगा या नहीं, इसका फैसला नियमित पीठ करेगी। दरअसल सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संवैधानिक पीठ ने 4-3 के बहुमत से यह आदेश दिया।


सुप्रीम कोर्ट ने एक फरवरी को सुरक्षित रख लिया था फैसला

साल 2006 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना था। उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। जिस पर सुनवाई के दौरान साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने मामले को सात जजों की पीठ के पास भेज दिया था। सुनवाई के दौरान सवाल उठा था कि क्या कोई विश्वविद्यालय, जिसका प्रशासन सरकार द्वारा किया जा रहा है, क्या वह अल्पसंख्यक संस्थान होने का दावा कर सकता है? इस मामले पर सुनवाई पूरी कर सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की पीठ ने बीती 1 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साल 1967 के फैसले को पलटते हुए स्पष्ट कर दिया कि कानून द्वारा बनाए गए संस्थान को भी अल्पसंख्यक दर्जा मिल सकता है। हालांकि अंतिम फैसले के लिए पीठ ने मामले को नियमित पीठ के पास भेज दिया है।  

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