अलीगढ मीडिया डॉट कॉम, अलीगढ| ‘छायावादी आलोचना’ के बहाने शोधार्थियों से संवाद करते हुए शंभूनाथ तिवारी प्रोफ़ेसर, हिंदी विभाग, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़, ने कहा कि जब हिंदी के अध्येता उत्तर आधुनिकतावाद और आधुनिकतावाद के साथ विमर्शों की दुनिया में व्यस्त हों, तब ऐसे समय में छायावाद और उसकी आलोचना पर बात करना रोमांचक , चुनौतीपूर्ण तो है ही, प्रासंगिक भी है।छायावाद के अधिकांश आरंभिक आलोचक और कवि छायावादी नाम से सहमत नहीं थे।छायावाद एक काव्य आंदोलन था।छायावादी आलोचना के दो स्वरूप दिखाई देते हैं। एक प्रशंसा का और दूसरा आलोचना का। प्रशंसा करना और आलोचना दोनों एकांगी दृष्टिकोण हैं। दोनों से अलग तटस्थ होकर सम्यक् दृष्टि से विचार करना ही संतुलित एवं वस्तुपरक आलोचना कही जा सकती है।छायावाद की कविता को पूरी तरह द्विवेदीयुगीन कविता की प्रतिक्रिया नहीं कहा जा सकता! प्रतिक्रिया इतनी शांत, संतुलित और सहज नहीं होती, जितनी छायावादी कविता है! छायावाद यत्किंचित् परकीय तत्वसंपृक्त द्विवेदीयुगीन कविता का विकास भी है! उसे मानवीय चेतना और संवेदना का काव्य कहा जा सकता है।
प्रोफ़ेसर शंभुनाथ तिवारी हंसराज कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के सभागार में आयोजित ‘ छायावादी आलोचना’ पुस्तक पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे! प्रोफ़ेसर चंद्रदेव यादव, अध्यक्ष, हिंदी विभाग, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली की आलोचना पुस्तक ‘ छायावादी आलोचना’ के बहाने हंसराज कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में आयोजित संगोष्ठी-परिचर्चा में बड़ी संख्या में उपस्थित विद्यार्थियों से कोरोनाकाल के बाद ऑफलाइन मोड में छायावाद की आलोचना पर बातचीत का अवसर सुखद और रोमांचक रहा। इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय, जे.एन.यू. नई दिल्ली, जामिया मिल्लिया इस्लामिया के शोधार्थियों, पीएच्. डी. हिंदी से जीवंत संवाद स्थापित हुआ! कार्यक्रम में प्रो. ओमप्रकाश सिंह, अध्यक्ष, भारतीय भाषा केंद्र, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, प्रो. अनिल राय, डीन, दिल्ली विश्वविद्यालय, प्रो. शंभुनाथ तिवारी, प्रोफेसर, हिंदी विभाग, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, प्रो. दिलीप शाक्य, प्रोफेसर, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, प्रो. रमा, प्राचार्य, हंसराज कॉलेज और पुस्तक के लेखक प्रो. चंद्रदेव यादव, प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, हिंदी विभाग, जामिया मिल्लिया इस्लामिया उपस्थित थे। कार्यक्रम का संयोजन शोधार्थी सुनील कुमार यादव ने किया। वरुण भारती, गुड़िया तबस्सुम जैसे जागरूक शोधार्थियों का अकादमिक श्रम कार्यक्रम को सफल बनाने में महत्वपूर्ण कहा जाना चाहिए।
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