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एएमयू के कुलपति द्वारा कोविड टीकाकरण पर एएमयू गजट के विशेष अंक का विमोचन

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अलीगढ मीडिया डॉट कॉम, अलीगढ़| अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर ने आज कोविड टीकाकरण पर एएमयू गजट के विशेष अंक का विमोचन किया। प्रोफेसर तारिक मंसूर ने माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों की सराहना की और जोर देकर कहा कि सही मायनो में वही भारत के कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रम के वास्तुकार थे। प्रोफेसर मंसूर ने कहा कि हम केंद्र सरकार और विभिन्न हितधारकों के प्रति भी आभार व्यक्त करते हैं जो विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित वैक्सीन परीक्षण और टीकाकरण अभियान के दौरान हमारे साथ खड़े रहे। हम अपने देश में वन बिलियन डोज की उपलब्धि से जुड़े सभी लोगों के प्रयासों की सराहना करते हैं। टीकाकरण संख्या न केवल दुनिया में कोविड टीकाकरण की उच्चतम ग्रहणशीलता को दर्शाती है, बल्कि यह एक रिकॉर्ड समय कि भी सूचक है जिसमें यह कीर्तिमान हासिल किया गया है।


एएमयू गजट का यह विशेष अंक देश द्वारा एक बिलियन डोज लैंडमार्क की प्राप्ति की सराहना के अलावा, विश्वविद्यालय के चिकित्सा विशेषज्ञों और अन्य लोगों के द्वारा कोविड वैक्सीन को प्रशासित करने में योगदान को समर्पित है।


इस अवसर पर बोलते हुए प्रोफेसर तारिक मंसूर ने कहा कि एएमयू को कोवैक्सिन परीक्षण के लिए चुना गया है और यह 1000 स्वयंसेवकों को नामांकित करने और अपनी रिपोर्ट जमा करने वाला पहला संस्थान है। जेएन मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर और शोधकर्ता कोविड का टीका लगाने में सबसे आगे हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय उनके अथक प्रयासों का सम्मान करता है। विश्वविद्यालय गजट में कोवैक्सिन के नैदानिक परीक्षण, एएमयू के डॉक्टरों के योगदान और महामारी के दौरान वैक्सीन परिक्षण के लिए आगे आए स्वयं सेवियों के योगदान पर लेख शामिल हैं। एएमयू के सामुदायिक चिकित्सा विभाग ने टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया और लगभग 90000 टीके की खुराक लगायी।


प्रोफेसर मंसूर ने समय पर प्रकाशन के लिए विश्वविद्यालय की संपादकीय समिति के प्रयासों की भी सराहना की। संपादकीय समिति के सदस्यों में मोहम्मद फैसल फरीद, डॉ अली जाफर आबदी, डॉ नफीस फैजी और उमर एस पीरजादा शामिल हैं।


विमोचन समारोह के दौरान चिकित्सा संकाय के डीन प्रोफेसर राकेश भार्गव, जेएनएमसी के प्रिन्सिपल प्रोफेसर शाहिद अली सिद्दीकी, समन्वयक, आपातकालीन चिकित्सा केंद्र, प्रोफेसर मोहम्मद शमीम, डॉ. जियाउद्दीन डेंटल कॉलेज के प्राचार्य, प्रोफेसर आर के तिवारी, जेएन मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल के चिकित्सा अधीक्षक, प्रोफेसर हारिस खान और कम्युनिटी मेडिसिन विभाग की अध्यक्ष प्रोफेसर सायरा महनाज़ भी उपस्थित थीं।



...एएमयू शिक्षक प्रोफेसर एमजे वारसी द्वारा ‘भाषाई और सांस्कृतिक विविधता‘ पर व्याख्यान

अलीगढ़, 28 जुलाईः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के भाषाविज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर एम जे वारसी ने स्थायी समाजों के निर्माण में सांस्कृतिक और भाषाई विविधता की भूमिका और भाषाई विविधता के मूल्य पर प्रकाश डालते हुए बताया कि कैसे भारतीय बहुभाषावाद की व्यापकता और लोकप्रियता में वृद्वि हो रही है। उन्होंने कहा कि भारत में भाषाई विविधता का परिमाण इस तथ्य से निर्धारित किया जा सकता है कि भारत की जनगणना (2011) के अनुसार भारत में 1599 अन्य भाषाओं के साथ 121 प्रमुख भाषाएं थीं।


वह यूजीसी मानव संसाधन विकास केंद्र (एचआरडीसी), राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर द्वारा ‘भाषाई विविधता की ओर’ विषय पर आयोजित रिफ्रेशर कोर्स में ‘भाषाई और सांस्कृतिक विविधताः कुछ प्रतिबिंब’ विषय पर मुख्य भाषण प्रस्तुत कर रहे थे।


प्रोफेसर वारसी ने कहा कि भारत में प्रमुख रूप से फैले इंडो-यूरोपियन, द्रविड़ियन, ऑस्ट्रो-एशियाटिक और तिब्बती-बर्मन भाषा परिवारों में सुविधाओं के संचरण का एक लंबा इतिहास है और इन साझा विशेषताओं के आधार पर ही अमेरिकी मानवविज्ञानी मरे बार्नसन एमेनेउ ने 1956 में ‘इंडिया ऐज़ ए लिंग्विस्टक ऐरिया’ के शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया था।


उन्होंने जोर दिया कि इस तथ्य के बावजूद कि प्रत्येक भारतीय राज्य ने कामकाज और शासन करने के लिए एक या दो आधिकारिक भाषाओं को अपनाया है, कई अन्य भाषाएं भी अलग-अलग जनसंख्या समूहों द्वारा बोली जाती हैं, जिससे भारत में भाषाई विविधता को एक अविश्वसनीय स्तर प्राप्त होता है।


प्रोफेसर वारसी ने उप-राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय भाषाई विविधता पर प्रकाश डालते हुए संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के एक चिंताजनक अध्ययन का भी हवाला दिया। उन्होंने कहा कि भारत में 196 भाषाओं के ‘लुप्तप्राय’ होने के कारण भारत यूनेस्को की उन देशों की सूची में सबसे ऊपर है जहां सबसे अधिक बोलियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। इनमें से दो संभावित विलुप्त भाषाओं (मणिपुरी और बोडो) को यूनेस्को 2010 अनुसूची के तहत ‘संकटग्रस्त’ और ‘असुरक्षित’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है।


प्रोफेसर वारसी ने संस्कृतियों, जीवन शैली, रीति-रिवाजों और धार्मिक समरस्ता के विकास के लिए नई भाषाएं सीखने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भाषा एक अनमोल उपहार है, जो अद्वितीय और विशिष्ट सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करती है। यह वह माध्यम है जिसके द्वारा संस्कृति, परंपराओं और साझा मूल्यों को संप्रेषित और संरक्षित किया जाता है।


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एएमयू के अजमल खां तिब्बिया कालिज के इलाज बित तदबीर विभाग के चिकित्सकों द्वारा शाहजमाल में स्वास्थ्य शिविर का आयोजन


अलीगढ़, 28 जुलाईः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के यूनानी चिकित्सा संकाय के इलाज बित तदबीर विभाग के डॉक्टरों और स्नातकोत्तर छात्रों की एक मोबाइल टीम ने ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ कार्यक्रम के अन्तर्गत अल्फिया पब्लिक स्कूल, शाहजमाल में एक स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया जिसमें 450 छात्रों और स्टाफ सदस्यों को मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं और दवाएं वितरित कीं गईं। शिविर का आयोजन आयुष मंत्रालय के भारतीय चिकित्सा प्रणाली के राष्ट्रीय आयोग की ‘हमारा आयुष हमारा स्वास्थ्य’ पहल के अनुसरण में किया गया।

इलाज बित तदबीर विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर मोहम्मद अनवर ने कहा कि स्कूल के छात्रों का मूल्यांकन उनके पोषण की स्थिति, विकास दर और बॉडी मास इंडेक्स पर किया गया। प्रोफेसर अनवर ने बताया कि स्कूल के जरूरतमंद छात्रों, शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों को मुफ्त दवाएं वितरित की गईं। उनमें से कुछ को अजमल खान तिब्बिया कॉलेज में विशेष उपचार के लिए भी भेजा गया।


उन्होंने कहा कि इस प्रकार के शिविरों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि लोगों को सही समय पर स्वास्थ्य सेवा मिल रही है, और एक छोटी स्वास्थ्य समस्या के गंभीर होने से पहले डॉक्टरों को उसे देख लेना चाहिए।

कैंप प्रभारी डाक्टर एम शोएब ने हाथों की स्वच्छता और स्वस्थ भोजन की आदतों के महत्व पर बात की। उन्होंने स्कूल के छात्रों और स्टाफ सदस्यों को डॉ सुमैय्या, डॉ सैफ, डॉ सूबिया, डॉ समरीन, डॉ रूशी और विभाग इंटर्न के साथ मुफ्त परामर्श भी प्रदान किया। कैम्प के आयोजन में अल्फिया पब्लिक स्कूल के प्रिन्सिपल जाकिर हुसैन का सक्रिय योगदान रहा।


 

अलीगढ मीडिया डॉट कॉम, अलीगढ़| अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर ने आज कोविड टीकाकरण पर एएमयू गजट के विशेष अंक का विमोचन किया। प्रोफेसर तारिक मंसूर ने माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों की सराहना की और जोर देकर कहा कि सही मायनो में वही भारत के कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रम के वास्तुकार थे।


प्रोफेसर मंसूर ने कहा कि हम केंद्र सरकार और विभिन्न हितधारकों के प्रति भी आभार व्यक्त करते हैं जो विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित वैक्सीन परीक्षण और टीकाकरण अभियान के दौरान हमारे साथ खड़े रहे। हम अपने देश में वन बिलियन डोज की उपलब्धि से जुड़े सभी लोगों के प्रयासों की सराहना करते हैं। टीकाकरण संख्या न केवल दुनिया में कोविड टीकाकरण की उच्चतम ग्रहणशीलता को दर्शाती है, बल्कि यह एक रिकॉर्ड समय कि भी सूचक है जिसमें यह कीर्तिमान हासिल किया गया है।


एएमयू गजट का यह विशेष अंक देश द्वारा एक बिलियन डोज लैंडमार्क की प्राप्ति की सराहना के अलावा, विश्वविद्यालय के चिकित्सा विशेषज्ञों और अन्य लोगों के द्वारा कोविड वैक्सीन को प्रशासित करने में योगदान को समर्पित है। इस अवसर पर बोलते हुए प्रोफेसर तारिक मंसूर ने कहा कि एएमयू को कोवैक्सिन परीक्षण के लिए चुना गया है और यह 1000 स्वयंसेवकों को नामांकित करने और अपनी रिपोर्ट जमा करने वाला पहला संस्थान है। जेएन मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर और शोधकर्ता कोविड का टीका लगाने में सबसे आगे हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय उनके अथक प्रयासों का सम्मान करता है।


विश्वविद्यालय गजट में कोवैक्सिन के नैदानिक परीक्षण, एएमयू के डॉक्टरों के योगदान और महामारी के दौरान वैक्सीन परिक्षण के लिए आगे आए स्वयं सेवियों के योगदान पर लेख शामिल हैं। एएमयू के सामुदायिक चिकित्सा विभाग ने टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया और लगभग 90000 टीके की खुराक लगायी। प्रोफेसर मंसूर ने समय पर प्रकाशन के लिए विश्वविद्यालय की संपादकीय समिति के प्रयासों की भी सराहना की। संपादकीय समिति के सदस्यों में मोहम्मद फैसल फरीद, डॉ अली जाफर आबदी, डॉ नफीस फैजी और उमर एस पीरजादा शामिल हैं।


विमोचन समारोह के दौरान चिकित्सा संकाय के डीन प्रोफेसर राकेश भार्गव, जेएनएमसी के प्रिन्सिपल प्रोफेसर शाहिद अली सिद्दीकी, समन्वयक, आपातकालीन चिकित्सा केंद्र, प्रोफेसर मोहम्मद शमीम, डॉ. जियाउद्दीन डेंटल कॉलेज के प्राचार्य, प्रोफेसर आर के तिवारी, जेएन मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल के चिकित्सा अधीक्षक, प्रोफेसर हारिस खान और कम्युनिटी मेडिसिन विभाग की अध्यक्ष प्रोफेसर सायरा महनाज़ भी उपस्थित थीं।



...एएमयू शिक्षक प्रोफेसर एमजे वारसी द्वारा ‘भाषाई और सांस्कृतिक विविधता‘ पर व्याख्यान


अलीगढ़, 28 जुलाईः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के भाषाविज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर एम जे वारसी ने स्थायी समाजों के निर्माण में सांस्कृतिक और भाषाई विविधता की भूमिका और भाषाई विविधता के मूल्य पर प्रकाश डालते हुए बताया कि कैसे भारतीय बहुभाषावाद की व्यापकता और लोकप्रियता में वृद्वि हो रही है। उन्होंने कहा कि भारत में भाषाई विविधता का परिमाण इस तथ्य से निर्धारित किया जा सकता है कि भारत की जनगणना (2011) के अनुसार भारत में 1599 अन्य भाषाओं के साथ 121 प्रमुख भाषाएं थीं।


वह यूजीसी मानव संसाधन विकास केंद्र (एचआरडीसी), राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर द्वारा ‘भाषाई विविधता की ओर’ विषय पर आयोजित रिफ्रेशर कोर्स में ‘भाषाई और सांस्कृतिक विविधताः कुछ प्रतिबिंब’ विषय पर मुख्य भाषण प्रस्तुत कर रहे थे।


प्रोफेसर वारसी ने कहा कि भारत में प्रमुख रूप से फैले इंडो-यूरोपियन, द्रविड़ियन, ऑस्ट्रो-एशियाटिक और तिब्बती-बर्मन भाषा परिवारों में सुविधाओं के संचरण का एक लंबा इतिहास है और इन साझा विशेषताओं के आधार पर ही अमेरिकी मानवविज्ञानी मरे बार्नसन एमेनेउ ने 1956 में ‘इंडिया ऐज़ ए लिंग्विस्टक ऐरिया’ के शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया था।


उन्होंने जोर दिया कि इस तथ्य के बावजूद कि प्रत्येक भारतीय राज्य ने कामकाज और शासन करने के लिए एक या दो आधिकारिक भाषाओं को अपनाया है, कई अन्य भाषाएं भी अलग-अलग जनसंख्या समूहों द्वारा बोली जाती हैं, जिससे भारत में भाषाई विविधता को एक अविश्वसनीय स्तर प्राप्त होता है।


प्रोफेसर वारसी ने उप-राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय भाषाई विविधता पर प्रकाश डालते हुए संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के एक चिंताजनक अध्ययन का भी हवाला दिया। उन्होंने कहा कि भारत में 196 भाषाओं के ‘लुप्तप्राय’ होने के कारण भारत यूनेस्को की उन देशों की सूची में सबसे ऊपर है जहां सबसे अधिक बोलियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। इनमें से दो संभावित विलुप्त भाषाओं (मणिपुरी और बोडो) को यूनेस्को 2010 अनुसूची के तहत ‘संकटग्रस्त’ और ‘असुरक्षित’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है।


प्रोफेसर वारसी ने संस्कृतियों, जीवन शैली, रीति-रिवाजों और धार्मिक समरस्ता के विकास के लिए नई भाषाएं सीखने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भाषा एक अनमोल उपहार है, जो अद्वितीय और विशिष्ट सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करती है। यह वह माध्यम है जिसके द्वारा संस्कृति, परंपराओं और साझा मूल्यों को संप्रेषित और संरक्षित किया जाता है।


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एएमयू के अजमल खां तिब्बिया कालिज के इलाज बित तदबीर विभाग के चिकित्सकों द्वारा शाहजमाल में स्वास्थ्य शिविर का आयोजन


अलीगढ़, 28 जुलाईः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के यूनानी चिकित्सा संकाय के इलाज बित तदबीर विभाग के डॉक्टरों और स्नातकोत्तर छात्रों की एक मोबाइल टीम ने ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ कार्यक्रम के अन्तर्गत अल्फिया पब्लिक स्कूल, शाहजमाल में एक स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया जिसमें 450 छात्रों और स्टाफ सदस्यों को मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं और दवाएं वितरित कीं गईं।


शिविर का आयोजन आयुष मंत्रालय के भारतीय चिकित्सा प्रणाली के राष्ट्रीय आयोग की ‘हमारा आयुष हमारा स्वास्थ्य’ पहल के अनुसरण में किया गया। इलाज बित तदबीर विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर मोहम्मद अनवर ने कहा कि स्कूल के छात्रों का मूल्यांकन उनके पोषण की स्थिति, विकास दर और बॉडी मास इंडेक्स पर किया गया। प्रोफेसर अनवर ने बताया कि स्कूल के जरूरतमंद छात्रों, शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों को मुफ्त दवाएं वितरित की गईं। उनमें से कुछ को अजमल खान तिब्बिया कॉलेज में विशेष उपचार के लिए भी भेजा गया।


उन्होंने कहा कि इस प्रकार के शिविरों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि लोगों को सही समय पर स्वास्थ्य सेवा मिल रही है, और एक छोटी स्वास्थ्य समस्या के गंभीर होने से पहले डॉक्टरों को उसे देख लेना चाहिए|

कैंप प्रभारी डाक्टर एम शोएब ने हाथों की स्वच्छता और स्वस्थ भोजन की आदतों के महत्व पर बात की। उन्होंने स्कूल के छात्रों और स्टाफ सदस्यों को डॉ सुमैय्या, डॉ सैफ, डॉ सूबिया, डॉ समरीन, डॉ रूशी और विभाग इंटर्न के साथ मुफ्त परामर्श भी प्रदान किया। कैम्प के आयोजन में अल्फिया पब्लिक स्कूल के प्रिन्सिपल जाकिर हुसैन का सक्रिय योगदान रहा।


 

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