अलीगढ मीडिया डिजिटल, फीचर डेस्क| चुनाव परिणामों ने भारतीय राजनीति को नई दिशा प्रदान की है। महाराष्ट्र में भाजपा समर्थित महायुति को 232 सीटें लेकर बंपर जीत, साथ ही उत्तरप्रदेश में विगत चुनाव की पराजय को धूमिल करते हुए 7 - 2 से चुनाव में विजय और झारखंड में चुनावी पराजय की समीक्षा के साथ यह निश्चित कहा जा सकता है कि यह विजय भाजपा को एक प्रचुर शक्ति प्रदान करेगा, किंतु जिन मुद्दों पर यह चुनाव हुए, किसी दल विशेष की विजय नहीं बताया सकता, यदि इन चुनावों की संक्षिप्त समीक्षा करें तो यह चुनाव केवल भाजपा की नहीं अपितु भारत में सनातन संस्कृति के भविष्य की दिशा भी तय करेंगे। महाराष्ट्र झारखंड और उत्तरप्रदेश में यह चुनाव सीधे - सीधे देश में बढ़ती इस्लामिक कट्टरता रोहिंग्या घुसपैठ और उसके प्रतिकार की धुरियों पर केंद्रित था।
इन चुनाव में महाराष्ट्र में हिंदू-मुस्लिम राजनीति का ध्रुवीकरण, सुन्नी वक्फ बोर्ड, ऑल इंडिया उलमा बोर्ड आदि की सक्रियता और मुस्लिम नेताओं के उन्मादी बयानों से सुप्त हिंदू सांस्कृतिक चेतना की जागृति और उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री महंत योगी आदित्यनाथ के सुशासन और बंटेंगे तो कटेंगे के नारे के असर ने, सरकार की लोककल्याणकारी योजनाओं का प्रभाव के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका का भी परिणाम है। किंतु झारखंड में भाजपा उपरोक्त कारणों के रहते हुए भी सुदृढ़ प्रादेशिक नेतृत्व के अभाव में हारी है। इन चुनावों का भविष्य में हिंदुत्व की राजनीति पर क्या असर होगा? यह विचारणीय है।
भले ही यह बात भाजपा कार्यकर्ताओं को हजम ना हो किंतु यह सत्य है कि देश में शुद्ध सनातन संस्कृति के धरातल पर खड़े होकर राजनीति कोई राजनैतिक दल नहीं कर रहा है, भाजपा भी नहीं। एक बात यह भी है कि भारत में मुस्लिम नेतृत्व एक निश्चित योजना लेकर चल रहे हैं, उसमें हथियारों के उपयोग के साथ जनसंख्या असंतुलन कर भारत में गज़वा ए हिंद करना है, जिसमें मुस्लिम जनसंख्या बल और दलितों के बड़े भाग को मिलाकर भारतीय राजनीति पर कब्जा करना है।
और इस षडयंत्र को सफल बनाने वाले कई तत्व भारतीय राजनीति में आज उपस्थित भी हैं, यथा - राजनेताओं की सत्तालोलुप राजनीति एक बड़ा कारण है जिसका लाभ देश के मुस्लिम नेतृत्व करते रहे हैं और भाजपा भी मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने में पीछे नहीं हैं। भाजपा की आज की प्रखर हिंदुत्व की राजनीति 240 सीटों पर खिसकने का परिणाम है।भारत में इस्लामिक कट्टरवाद में निरंतर बढ़ोत्तरी चिंताजनक है जो देश की मोदी सरकार को अस्थिर करने के लिए हिंसा के रास्ते को अपनाने को भी आतुर दिखा रहे हैं। इसके साथ वो भारत विरोधी विदेशी शक्तियां है जो किसी भी कीमत पर भारत को कमजोर करना चाहते हैं।
भारत की संप्रभुता को भारतीय लोकतंत्र में हिलोरे लेते भ्रष्ट प्रशासन न्यायपालिका और मीडिया की बहुत चिंताजनक भूमिका है। साथ ही एक बड़ी चुनौती भाजपा का छद्म सेक्युलरवाद भी है क्योंकि सत्ता में बने रहने को भाजपा किसी भी राजनैतिक मार्ग को पकड़ सकती है यदि हिंदुत्व शक्तिशाली रहा तो ठीक वरना कांग्रेस बनने में कितनी देर लगेगी, सबका साथ सबका विकास का नारा जिंदाबाद है ही।
भाजपा की आंतरिक गुटबंदी एक बड़ा सिरदर्द बनती जा रही है, महंत योगी आदित्यनाथ जी के चमत्कारी नेतृत्व को आज भी वरिष्ठ भाजपा नेता मोदी शाह के कारण स्वीकारने को तैयार नहीं है। बंटेंगे तो कटेंगे के नारे की सफलता के विषय में योगी जी के पक्ष में अब भी बोलने को भाजपा नेता तैयार नहीं एक अजीब सा भय का वातावरण है।
ध्वस्त संगठनात्मक ढांचा भी भाजपा की बड़ी कमजोरी बन चुका है, भाजपा में शासन चलाने की क्षमता वाले योग्य कार्यकर्ताओं का अभाव होता जा रहा है।
देश की राजनीति में लचर कायर और भ्रष्ट नेताओं का वर्चस्व है। देश की राजनीति में से कांग्रेस का पतन की घोषणा है - यह चुनाव परिणाम।
हमारी बहुत बड़ी चिंता देश में हिंदुत्व की रक्षा करने वाली शक्ति की शून्यता है, जिसे सुदृढ़ करना ही हमारा एक मात्र लक्ष्य है, यही इस चुनावों के परिणामों का सबक है - यह मानना चाहिए।
(✍️अशोक चौधरी, टिप्पणी: यह लेखक के निजी विचार हैं, वह सामाजिक संगठन आहुति के अध्यक्ष हैं)