जम्मू कश्मीर पर भारतीय संसद के ऐतिहासिक संकल्प का विश्लेषण... पढ़िए, ज्ञानेंद्र मिश्रा को

Aligarh Media Desk
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अलीगढ मीडिया डिजिटल, अलीगढ़ | ऐसे में जब जेएनयू जैसे विश्वविध्यालय में भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाअल्लाह इंशाअल्लाह के नारे लग चुके हों तब 22 फरबरी 1994 के दिन को याद करना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है | यह वो दिन था जब भारत की संसद ने समवेत स्वर में एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर (POJK) को भारत का अभिन्न अंग घोषित किया गया । आज जब उस संकल्प को ३१ वर्ष पूरे हो चुके हैं 22 फरवरी 1994 को भारतीय संसद ने यह प्रस्ताव न केवल भारत की संप्रभुता और अखंडता के प्रति दृढ़ संकल्प को दर्शाता है, बल्कि उस क्षेत्र के ऐतिहासिक, आर्थिक, सामरिक और सामाजिक महत्व को भी रेखांकित करता है| आज की युवा पीढ़ी को उस प्रस्ताव की महत्ता के विषय में अवगत कराना हम सब की सामूहिक जिम्मेदारी है | अविभाजित जम्मू एवं कश्मीर को हम सब भारत का मस्तक मानते है | इसी भूमि पर भारत के भाल के रूप में विश्व का दूसरा सबसे ऊँचा पर्वत है। के-2 के नाम से प्रसिद्ध यह पर्वत पाकिस्तान अधिक्रांत गिलगित-बल्तिस्तान क्षेत्र एवं चीन द्वारा नियंत्रित शिनजिआंग प्रदेश की सीमा पर काराकोरम पर्वतमाला की बाल्तोरो मुज़ताग़ उपशृंखला में स्थित है। 


प्राचीन काल से ही यह क्षेत्र भारतीय सभ्यता का हिस्सा रहा है। हमारे पूर्वजों  ब्रह्म, ययाति, राम, कृष्ण, बुद्ध, गुरुनानक आदि ने इस भारत को एक सत्रू में पिरोया है । महाभारत और अन्य प्राचीन ग्रंथों में कश्मीर का उल्लेख मिलता है। यह भूमि भारत का सुरक्षा चक्र होने के साथ साथ  शिक्षा और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण केंद्र रही है | जम्मू कश्मीर कश्यप पुत्रों की भूमि रही है, परन्तु वैचारिक छल से ‘कश्मीरियत’ की व्याख्या केवल मध्यकालीन प्रतीकों से की जाने लगी और भारतीय सनातन परम्परा के हमारे पूज्य ऋषि अभिनवगुप्त, कल्हण, विल्हण, नागार्जुन , कुमारजीव, गुणाढ्य, लगध, चरक, विष्णु शर्मा, नागसेन, वाग्भट, वसुगुप्त, मेघातिथि व नंद ऋषि आदि को विमर्श से बाहर कर दिया गया । 


अगर स्वतंत्रता प्राप्ति के समय की बात करें तो वर्ष 1947 में भारत के विभाजन के बाद जम्मू-कश्मीर रियासत ने भारत में विलय का फैसला किया। जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत में विलय के समझौते पर हस्ताक्षर किए। हालांकि, पाकिस्तान ने इस फैसले को स्वीकार नहीं किया और 1947-48 में कबायली घुसपैठ के माध्यम से जम्मू-कश्मीर पर हमला कर दिया। इसके परिणामस्वरूप, जम्मू-कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के अवैध कब्जे में चला गया, जिसे आज पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर (POJK) के नाम से जाना जाता है। संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप के बाद 1949 में युद्धविराम हुआ, लेकिन पीओजेके का मुद्दा अनसुलझा रहा।


1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों सहित हजारों हिन्दुओं एवं सिखों के नरसंहार के साथ ही पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देना शुरू किया, जिससे भारत की सुरक्षा और संप्रभुता को गंभीर खतरा पैदा हो गया। इसी पृष्ठभूमि में, भारतीय संसद ने 22 फरवरी 1994 को एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया कि पूरा जम्मू-कश्मीर, जिसमें पीओजेके भी शामिल है, भारत का अभिन्न अंग है। इस प्रस्ताव में पाकिस्तान से पीओजेके को खाली करने और भारत को वापस करने की मांग की गई।  पीओजेके का भारत में विलय एक ऐतिहासिक तथ्य है, जिसे पाकिस्तान ने हमेशा नजरअंदाज किया है। भारत का पीओजेके पर दावा न केवल कानूनी है, बल्कि ऐतिहासिक रूप से भी पूरी तरह से वैध है। 


1994 का प्रस्ताव इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में आया, जब पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर मुद्दे को उठाकर भारत को घेरने की कोशिश की। भारतीय संसद ने इस प्रस्ताव के माध्यम से स्पष्ट किया कि जम्मू-कश्मीर भारत का अटूट और अविभाज्य अंग है और पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर (POJK) पर पाकिस्तान का कब्जा अवैध है। इस प्रस्ताव ने भारत की संप्रभुता और अखंडता को मजबूती प्रदान की और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की स्थिति को स्पष्ट किया।

पीओजेके का भारत के लिए ऐतिहासिक, आर्थिक, सामरिक और सामाजिक महत्व अत्यधिक है। ऐतिहासिक दृष्टि से, यह क्षेत्र भारतीय संस्कृति और इतिहास का अभिन्न हिस्सा रहा है। आर्थिक दृष्टि से, यह क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है और इसके विकास से पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को लाभ हो सकता है। सामरिक दृष्टि से, पीओजेके की भौगोलिक स्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भारत और पाकिस्तान के बीच एक रणनीतिक कड़ी के रूप में कार्य करता है। सामाजिक दृष्टि से, यह क्षेत्र भारतीय समाज की विविधता और एकता का प्रतीक है।


पीओजेके को भारत में वापस लाना न केवल भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए आवश्यक है, बल्कि इस क्षेत्र के लोगों के कल्याण और विकास के लिए भी जरूरी है। भारत सरकार ने इस दिशा में कई कदम उठाए हैं| यह प्रस्ताव आज भी भारत की विदेश नीति और कश्मीर मुद्दे पर उसके रुख का आधार बना हुआ है। इस प्रस्ताव ने यह सिद्ध कर दिया कि भारत किसी भी परिस्थिति में अपने क्षेत्रीय अधिकारों से समझौता नहीं करेगा और कश्मीर के सभी हिस्सों को भारत का अभिन्न अंग मानता है। पीओजेके के भारत में वापसी की मांग आज भी भारतीय जनमानस की प्रमुख आकांक्षा है और यह प्रस्ताव उस आकांक्षा को मजबूती प्रदान करता है। लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। पीओजेके के भारत में विलय का सपना तभी पूरा होगा, जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय पाकिस्तान के अवैध कब्जे को समाप्त करने के लिए गंभीर प्रयास करेगा |



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