#AMU न्यूज़| जहाँ इतिहास के पन्ने मूक हो जाते हैं, लोक वहीं से शुरू हो जाता है..

Aligarh Media Desk
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पीजी रेजिडेंट डा. आकांक्षा ने थोरेसिकॉन 2025 में पीजी क्विज में दूसरा पुरस्कार जीता

अलीगढ मीडिया डिजिटल, अलीगढ़, 1 मार्च जेएनएमसीएएमयू के क्षय रोग और श्वसन रोग विभाग की तीसरे वर्ष की पीजी रेजिडेंट डॉ. आकांक्षा रानी ने उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में आयोजित थोरेसिकॉन 2025 में पीजी क्विज प्रतियोगिता में दूसरा पुरस्कार हासिल किया।

थोरेसिकॉनएक प्रतिष्ठित पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर सम्मेलनप्रमुख चिकित्सा विशेषज्ञों को आकर्षित करता है। प्रतियोगिता ने श्वसन चिकित्सा और महत्वपूर्ण देखभाल में प्रतिभागियों की विशेषज्ञता का परीक्षण कियाजहां डॉ रानी के असाधारण प्रदर्शन ने उन्हें यह मान्यता दिलाई।

प्रो. मोहम्मद शमीम ने डॉ रानी को बधाई देते हुए कहा कि उनकी उपलब्धि विभाग के उच्च शैक्षणिक मानकों को दर्शाती है। उनकी सफलता युवा चिकित्सा पेशेवरों के लिए प्रेरणा का काम करती है।

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जहाँ इतिहास के पन्ने मूक हो जाते हैंलोक वहीं से शुरू हो जाता है!

अलीगढ़, 01 मार्चः अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवार्सिटी के हिंदी विभाग द्वारा लोकसाहित्य- उचयसंस्कृति विविध आयाम एवं चुनौतियाँ’ विषय पर कला संकाय सभागार में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न हो गई।

मुख्य वक्ता अंग्रेज़ी विभाग की प्रो. विभा शर्मा नेे कहा कि लोकसाहित्यसंस्कृतिक एवं परम्परा को हम नहीं बनाते हैंबल्कि यह स्वयं बनता है। आज इसे सहेजने की ज़रूरत है।

विशिष्ट वक्ता डाॅ. शिवचंद प्रकाश ने कहा कि लोक पम्परागत होता है। जहाँ इतिहास के पन्ने मूक हो जाते हैंलोक वही से शुरू हो जाता है। देशसमाज और संस्कृति को सम-हजयने के लिए लोकसाहित्य को जानना आवश्यक है।

सत्र के अध्यक्ष प्रो. रमेशचंद्र शर्मा ने लोक साहित्य एवं साहित्य के अंतर को स्पष्ट किया और कहा कि लोक साहित्य जन्म से मृत्यु तक विभिन्न घटनाओं के माध्यम से जीवन को तलाशता है।

सत्र में डाॅ. जावेद आलम ने हिंदी आलोचना में लोक तथा डाॅ. सना फ़ातिमा ने मेवाती लोक महाभारत: पंडून कौ कड़ा पर अपने विचार प्रस्तुत किए। समापन सत्र के विशिष्ट वक्ता प्रो. वेद प्रकाश ने कहा कि लोकसाहित्य के इतिहास का निर्धारण करना सब से बड़ा संकट है। तटस्थ होकर लोकसाहित्य का संकलन करना वर्तमान में कठिन कार्य है।

प्रो. तसनीम सुहैल ने अपने वक्तव्य में कहा कि लोकसाहित्य अन्य साहित्य को उर्वरा शक्ति प्रदान करता है। लोकसाहित्य हमारे लिए मूल हैजो अन्य साहित्य लेखन के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। मुख्य वक्ता प्रो. तारिक़ छतारी ने कहा कि लोक कथाएँ मनोरंजन करने के साथ-ंउचयसाथ हमंे इतिहास की ओर ले जाती हैं। उदूँ की अनेक लोककथाओं के उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि बहुत से मुहावरे और कहावतें लोकसाहित्य से ही प्रचलन में आई हैं।

अपने निदेशकीय वक्तव्य में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. मोहम्मद आशिक़ अली कहा कि लोकविषय से संबंधित सजगता बहुत ज़रूरी है। हमें जागरूक होकर लोकसाहित्य का अवलोकन करना चाहिए।

हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार प्रो. अब्दुल बिस्मिल्लाह ने कहा कि प्रत्येक लोक विशेष के लोकसाहित्य का भावलोक भिन्न है। उन भावों को सम-हजयना और एक साथ जोड़कर उनका अध्ययन करना हम सब का काम है। सत्र संचालन डाॅ. जावेद आलम तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रो. शंभुनाथ तिवारी ने किया। इस अवसर पर हिंदी विभाग के सभी संकाय सदस्य एवं शोधार्थी उपस्थित थे।

समापन समारोह के अवसर पर डॉ नूरअफशां की पुस्तक अब्दुल बिस्मिल्लाह के कथा- साहित्य में यथार्थ बोध’ का  विमोचन हुआ।इस अवसर पर कथाकार अबदुल बिस्मिल्लाह,कथाकार तारिक छतारी,विभागाध्यक्ष प्रोफेसर मो आशिक अलीप्रोफेसर तसनीम सुहेलप्रोफेसर वेदप्रकाशप्रोफेसर शंभूनाथ तिवारीप्रोफेसर अजय बिसरियाडॉ शगुफ्ता नियाज और बड़ी संख्या में छात्र छात्राएं शामिल हुए।

 

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