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दुनिया के मजदूरों एक हो का नारा बुलन्द करें, कुर्बानियों की बदौलत ही 8 घंटे काम का अधिकार

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अलीगढ मीडिया डॉट कॉम, अलीगढ| दुनियाभर के मेहनतकशों की एकजुटता का आह्वान करने वाले नारे को बुलंद करें - दुनिया के मजदूरों एक हो!  8 घंटे काम का अधिकार हो या यूनियन बनाने का अधिकार अब इस नारे को बुलंद किए बिना संभव नहीं। उक्त विचार भाकपा के राज्य सचिव गिरीश चन्द्र शर्मा ने पान दरीबा में श्रमिक संगठनों के साझा मंच द्वारा मजदूर दिवस पर आयोजित गोष्ठी में व्यक्त किए। उन्होंनें मौजूदा समय में मजदूर की दयनीय हालात पर चिन्ता व्यक्त की। उनका कहना था कि 1888 का शिकागो के मजदूरों का बलिदान हमें याद दिला रहा है कि उनकी कुर्बानियों की बदौलत ही 8 घंटे काम का अधिकार दुनिया मजदूरों का मिला। 

  लेकिन आज स्थितियां विपरीत हो गई शोषणकारी शक्तियों ने धर्म और जाति का नफरती जहर मजदूरों की एकता को तोडने की कोशिश की है। जिसके रहते मौजूदा सरकारें काम के घंटे के अधिकार समाप्त कर चुकी है,  यूनियन बनाने के अधिकारों को जटिल बनाया जा रहा है, हड़तालों-प्रदर्शनों पर एस्मा जैसे कानून थोपकर प्रतिबंधित करना जारी है।

   एलआईसी कर्मचारी यूनियन के सचिन जैन ने आगामी 4 मई को प्रस्तावित एलआईसी के आईओपी की कार्यवाही पर केन्द्र सरकार की आलोचना की और एलआईसी को पूँजीपतियों के हाथों बेचने की कार्यवाही को मजदूर विरोधी बताया।

 विद्युत कर्मचारी यूनियन से रामकुमार शर्मा ने कहा कि सरकार मजदूरों और कर्मचारियों की मेहनत से खड़े सभी सार्वजनिक निकायों का निजीकरण करने जा रही है। 

आमजन की जीवन रेखा बन चुकी बिजली को भी प्राइवेट हाथों में सौंपने की कोशिश है। आज देश के तमाम कर्मचारियों और मजदूरों एकजुटता के साथ सरकार की इन जनविरोधी नीतियों का विरोध करना होगा। 

 यूपी मैडीकल रिप्रजेंटेटिव एसोशिएसन के अरूण पाठक और कामरेड राजकुमार ने चिकित्सा क्षेत्र को गरीबों की पहुँच से दूर करने की पूँजीपतियों की साजिशों को उजागर किया। जिनके रहते प्राइवेट अस्पतालों, महंगी दवाओं, के भरोसे देश का गरीब अपना इलाज कैसे कराएगा। 

  प्रो. अशोक प्रकाश ने पढ़े लिखे समाज विशेषकर अध्यापकों-छात्रों से अपील की कि हम मिलकर मजदूर बस्तियों में जाएं और मजदूरों की वर्गीय चेतना का विकास करें, संगठित करें। संयुक्त किसान मोर्चा के शशिकांत ने कहा कभी खेतिहर मजदूर रहा, आज कारखाना मजदूर बन गया। कोरोना और आर्थिक संकट के बाद एक बडी संख्या में वह फिर गांव लौट गया। तमाम पूँजीवादी सरकारें न तो खेती का मोल देना न पूरी मजदूरी। अब देश के मजदूर किसानों को एक जुट होकर अपने श्रम के मोल को पूँजीपतियों की कैद से आजाद कराने की निर्णायक लडाई लडनी है। 

  अमुवि के प्रो सुहेब शेरवानी ने कहा कि अब हमें रस्मी प्रतिरोध की परंपरा को लांघकर मजदूरों के शोषण के खिलाफ क्रांतिकारी कदम उठाने होंगें। केवल चुनावी बदलाव से मजदूर का शोषण समाप्त होना संभव नहीं। 

 आल इंडिया प्यूपिल्स लार्यस यूनियन के ओ पी शर्मा ने कहा कि मजदूर की माली हालत इतनी बदतर बना दी गई कि वह पेट भरने के अलावा शिक्षा, चिकित्सा, घर-मकान के बारे में सोच ही सकता। हमें शोषणमुक्ति के लिए मजदूरों की एकजुटता का संकल्प दोहराना होगा। 

  यूपी बैंक इंपलायज यूनियन के राकेश सक्सैना ने कहा कि मजदूर की इस दयनीय हालत के जिम्मेदार वे व्हाइट कालर कर्मचारी हैं, जो मजदूर आंदोलन के नाम पर सत्ता और पूँजीपतियों की दलाली करने में शामिल हैं। गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ अधिवक्ता एच एन सिंह ने की तथा संचालन साझा मंच के संयोजक इदरीस मोहम्मद ने किया। गोष्ठी के दौरान एडवोकेट जीनत शेख ने शिकागो के अमर शहीद मजदूर नेताओं के ऐतिहासिक  पत्रों का वाचन भी किया।

      


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