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1857 के विद्रोह पर स्वदेशी विमर्श और परिप्रेक्ष्य‘ पर प्रमुख इतिहासकार प्रो. जहीर हुसैन जाफरी का व्याख्यान

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अलीगढ मीडिया डॉट कॉम, अलीगढ़ 27 अगस्तः ‘1857 के विद्रोह पर स्वदेशी विमर्श और परिप्रेक्ष्य‘ विषय पर प्रोफेसर सैयद जहीर हुसैन जाफरी, (पूर्व अध्यक्ष, इतिहास विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय) ने कहा कि इंजमामुल्लाह शहाबी, गुलाम रसूल मेहर, अबरार हुसैन फारूकी, अयूब कादरी, अतीक अहमद सिद्दीकी और विभिन्न उर्दू लेखकों की उर्दू लेखों की आधुनिक इतिहासकारों ने 1857 के इतिहास के मौलिक कारणों का पता लगाने से सम्बन्धित अध्यन की अनदेखी की है।


प्रो. जाफरी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के उन्नत अध्ययन केंद्र में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम पर शोध पर व्याख्यान दे रहे थे।उन्होंने कहा कि अतीक अहमद सिद्दीकी का एक ऐसा महत्वपूर्ण काम ‘1857ः समाचार पत्र और दस्तावेज’ है, जो विद्रोही दस्तावेजों, समकालीन उर्दू समाचार पत्रों और अन्य स्वदेशी सामग्री से महत्वपूर्ण रिकॉर्ड को संदर्भित करता है। उन्होंने कहा कि हालांकि विद्रोह विफल हो गया, लेकिन इसने ब्रिटिश साम्राज्यवाद की नींव को बुरी तरह हिला दिया जिसने कई एशियाई देशों को औपनिवेशिक शासन के चंगुल से बचाया।


प्रो. जाफरी ने विषय के अध्ययन के लिए ऐसी स्थानीय सामग्री का उपयोग करने की आवश्यकता पर बल दिया और एक महत्वपूर्ण पुस्तक ‘फतेह-ए-इस्लाम’ का उल्लेख किया, जिसका अनुवाद ब्रिटिश अधिकारियों ने ‘अवध में जिहाद का ऐलान’ के रूप में किया था जो अवध और रोहिलखंड में स्वतंत्रता संग्राम के महान नेताओं में से एक मौलवी अहमदुल्ला शाह से जुड़े एक समूह द्वारा लखनऊ से जारी एक घोषणा पत्र था। उन्होंने 30 जून 1857 को चिन्हट की लड़ाई में अंग्रेजों को भी हराया और लखनऊ में सबसे शक्तिशाली सैन्य कमांडर के रूप में उभरे। प्रो. जाफरी उस विद्रोह को समझने के लिए एक वैकल्पिक परिप्रेक्ष्य प्रदान करते हैं जिसने दिल्ली और अवध में ब्रिटिश शासन को हिला दिया और 1857 के ‘विद्रोह’ में दिल्ली उर्दू अखबार और तिलिस्म लखनऊ जैसे उर्दू अखबारों की भूमिका पर प्रकाश डाला।


अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रो. मिर्जा असमर बेग (डीन, सामाजिक विज्ञान संकाय) ने कहा कि यह व्याख्यान व्यापक शोध का परिणाम था जो आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम का एक हिस्सा था। उन्होंने कहा कि 1857 का ‘विद्रोह’ भारत के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक था और यह देखना दिलचस्प था कि विभिन्न स्थानीय स्रोतों के माध्यम से संवाद का निर्माण करने की राजनीति ने विद्रोह की पूरी अवधि में कैसे काम किया।


इससे पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए, प्रोफेसर गुल्फिशान खान (अध्यक्ष इतिहास विभाग और कार्यक्रम समन्वयक) ने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी ऐतिहासिक विषय पर शोध के लिए स्थानीय स्रोतों और स्थानीय सामग्रियों का अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने छात्रों और युवा विद्वानों से इन विषयों पर काम करने और नई अंतर्दृष्टि और शोध प्रदान करने का आग्रह किया।


उन्होंने कहा कि प्रो. सैयद ज़हीर हुसैन जाफ़री भी एएमयू के पूर्व छात्र हैं और एक प्रसिद्ध इतिहासकार हैं जो पूर्व-औपनिवेशिक अवध और ऊपरी गंगा घाटी के आर्थिक और सामाजिक जीवन पर अपने शोध के लिए जाने जाते हैं।कार्यक्रम संयोजक डॉ सना अजीज ने व्याख्यान के विषय पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन पर कोई भी चर्चा 1857 के विद्रोह के संदर्भ के बिना पूरी नहीं होती, जिसे अक्सर औपनिवेशिक प्रतिरोध या स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय संघर्ष के पहले चरण के रूप में वर्णित किया जाता है।


उन्होंने कहा कि इस तथ्य के बावजूद कि इतिहास लेखन के विभिन्न विचारधाराओं के इतिहासकारों ने इस विषय पर काम किया है, ऐतिहासिक विवादों और मुख्यधारा के इतिहास लेखन में अंतराल के कारण अभी भी शोध और अध्यन की आवश्यकता है। व्याख्यान के दौरान बड़ी संख्या में शिक्षक शोधार्थी व छात्र मौजूद रहे।


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जेएन मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने ढाई वर्ष के बाल की दुर्लभ सर्जरी को अंजाम दिया।

अलीगढ़ 27 अगस्तः मुरादाबाद निवासी ढाई साल के बच्चे रय्यान के दोनों पैरों में पिछले 6 महीने से गंभीर कमजोरी थी, इसलिए उसे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया जहां बच्चे की रीढ़ की एमआरआई की गई, जिसमें पता चला कि बच्चे को रीढ़ में एक बड़ा ट्यूमर था जो गले की नस तक फैल गया था और जिसने शरीर को रक्त की आपूर्ति करने वाली एक नस को भी अवरुद्ध कर दिया था।


न्यूरो सर्जरी विभाग के चिकित्सकों व कार्डियोथोरासिक सर्जरी विभाग के चिकित्सकों द्वारा बालक की जांचे कराई गई और इन जांच के बाद न्यूरोसर्जन और कार्डियोथोरेसिक सर्जनों की एक टीम ने बच्चे का सफलतापूर्वक ऑपरेशन किया और ट्यूमर को सफलतापूर्वक निकाल दिया।


जेएनएमसी के न्यूरो सर्जरी विभाग में चिकित्सक न्यूरोसर्जन डॉ अहमद अंसारी ने कहा कि सर्जरी में लगभग पांच घंटे लगे क्योंकि ट्यूमर रीढ़ की हड्डी और पांच वर्टिबरल सिगमेंट वाली नसों पर दबाव डाल रहा था। हमने पूरे ट्यूमर को हटा दिया है।


सर्जरी के बारे में बताते हुए कार्डियोथोरेसिक सर्जन प्रो. मुहम्मद आजम हसीन ने कहा कि हमने शरीर की सबसे बड़ी नस को ब्लॉक करने वाले बाकी ट्यूमर को निकालने के लिए छाती के बाएं हिस्से को खोला  क्योंकि ट्यूमर को हटाने के लिए बारीकी से जांच करना आवश्यक था। न्यूरोसर्जरी विभाग के अध्यक्ष प्रो. रमन मोहन शर्मा ने कहा कि एक छोटे बच्चे में लगभग 15-20 सेमी के इतने बड़े ट्यूमर का ऑपरेशन करने के लिए बहुत अधिक कौशल और टीम प्रबंधन की आवश्यकता होती है और मेडीकल कालिज के चिकित्सकों ने बड़ी ही सावधानी के साथ इस दुर्लभ सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। प्रो. शहला हलीम और डॉ. अल्ताफ रहमान हैदर ने बच्चे को एनेस्थीसिया दिया।


न्यूरोसर्जरी विभाग के प्रोफेसर एम. फखरुल हुदा ने कहा कि जेएनएमसी में अधिक जटिल न्यूरोसर्जिकल मामले किए जा रहे हैं। इस विशेष मामले में टीम वर्क की आवश्यकता थी। डॉ. ताबिश खान ने कहा कि बच्चों में बेहतर परिणाम के लिए उत्कृष्ट शल्य चिकित्सा कौशल के साथ-साथ पोस्ट-ऑपरेटिव अवधि में गहन चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता होती है। जेएन मेडिकल कॉलेज के डीन और प्रिंसिपल प्रो. राकेश भार्गव ने इस सफल सर्जरी के लिए न्यूरोसर्जन और कार्डियोथोरेसिक सर्जन की टीम को बधाई दी।


 

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