चंचल वर्मा, अलीगढ मीडिया डॉट कॉम, अलीगढ| नगर निकाय चुनावो का शोर फिर से शुरू होने जा रहा है| चुनावी समर में हर प्रत्याशी जनता के बीच जाकर बड़े बड़े बायदे करता है और इस बार भी करेगा| लेकिन प्रत्याशियों के इन्ही बायदों का हिसाब लेने के लिए हरदुआगंज कस्बे की जनता अपनी बारी का इंतजार कर रही है| चुनाव अचार संहिता लागू होते ही प्रत्याशियो का नामांकन और फिर जनता के दरवार में जाकर वोट मांगते बक्त उनके लिए बायदों की लम्बी लिस्ट सुनना प्रत्याशी शुरू कर देंगे| लेकिन कुछ बायदे जिन्हे जनता भूलती नहीं है| और उसका हिसाब देना नेता के लिए मुसीबत बन जाता है|
ऐसा ही एक बायदा आजकल हरदुआगंज कस्बे में जनता की जुबां पर ताजा हो गया है| जिसका हिसाब मांगने के लिए जनता टकटकी लगाए बैठी है| वह बायदा है तत्कालीन नगर पंचायत हरदुआगंज के निवर्तमान चेयरमैन तिलकराज यादव का| वर्ष २०१७ में तिलक राज यादव ने वार्ड नम्बर भीम नगर में रेशम देवी से वायदा किया यहां कि वह उनके बच्चो को गोद ले रहे है और उनकी शादी होने तक उनकी जिम्मेदारी को वह खुद निभाएंगे| लेकिन चुनाव जीतने के बाद नेताजी ने अपनी कही बात पर फिर काफी गौर नहीं किया, मजबूरी के ६० साल की उम्र में भी रेशमा अपने एक नाते और तीन नतिनी की जिम्मेदारी अपने बूढ़े कंधो पर बखूबी निभा रही है|
...क्या था मामला
असल में वर्ष २०१७ में नगर पंचायत के चुनावी समर था उस समय रेशमा देवी के बेटे अशोक कुमार की सड़क हादसे में मौत हो गयी| आर्थिक रूप से बेहद कमजोर इस दलित परिवार के इकलौते बेटे की असमय मौत के बाद उसके चार मासूम बच्चे दो बक्त की रोटी के लिए तरस गए| इसी दुश्वारियों में रेशमा की पुत्र बधु भी चल बस| माँ पाप का साया सर से उठ जाने के बाद अशोक के चारो बच्चे बन्दना, विष्णु, संजना, और गौरी बिल्कुल अनाथ हो गए| ऐसे बक्त में दलित वोटो की आस में तिलक राज यादव ने जनता के बीच इन चारों बच्चो को गोद लेने की घोषणा कर दी| अनाथ दलित बच्चो को गोद लेकर तिलक राज यादव में मीडिया में खूब सुर्खिया बटौरी|
लेकिन चुनाव जीतने के बाद उन्होंने इस दलित परिवार की और कभी मुड़कर नहीं देखा| अनाथ बच्चो को अपने चेयरमैनकाल में तिलकराज यादव ने कुछ खास मदद भी नहीं की| खाने के लिए दाने-दाने के लिए मजबूर हो चले इस परिवार की मदद के लिए इलाके के समाजसेवी आगे आये लेकिन गोद लेने वाले तिलकराज यादव ने बच्चों की सुध नहीं ली| अनाथ बच्चों की बूढ़ी माँ रेशमा से जब अपनी पीड़ा बयां करती है तो बताती है कि तिलकराज यादव ने उनके बच्चों की कभी सुध नहीं ली|