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अशोक चौधरी की कलम से पढ़िए, पते की बात: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एक इस्लामिक जिहादी अजगर

(यह आलेख लेखक की निजी राय है, अलीगढ़ मीडिया ग्रुप का इसे समर्थन होना जरूरी नहीं है)

By, Ashok Choudhary: एक बार फिर अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय का इस्लामिक जिहादी अजगर अपना फन फैला कर खड़ा हो गया, जब इस विश्वविद्यालय(एएमयू) में गणतंत्र दिवस पर आयोजित समारोह के बाद राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) की वर्दी पहने छात्रों ने एएमयू जिंदाबाद के साथ 'अल्लाह हू अकबर' के नारे लगाए गये। सारे मीडिया चैनल और सोशल मीडिया पर हंगामा बरपा है किन्तु मुझे यह कोई आश्चर्यजनक घटना नहीं लगती, मात्र एक बात को छोड़कर कि यह सब आज भाजपा नेतृत्व के संरक्षण में हो रहा है, जिससे देश भर के राष्ट्रवादी सकते में है। 


   अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना सैयद अहमद और ब्रिटिश हुकुमत की सुविचारित योजना का परिणाम थी, जिसमें भारत की सुदृढ़ सनातन शक्ति को ध्वस्त करने और भारत को पुनः विश्व पटल पर महाशक्ति बनने से रोकने के लिए साम्प्रदायिक विभाजन की आधार शक्ति बनाने की कार्ययोजना शमिल थी।    

      सैयद अहमद भारत के प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने 1857 की सशस्त्र क्रांति में भाग लेने वालों को मक्कार और ग़द्दार ही नहीं बताया, अपितु द्वि-राष्ट्रवाद के सिद्धांत की आधारशिला यह कहकर रखी कि 'इन परिस्थितियों में दो राष्ट्र - मुसलमान और हिंदू -क्या एक ही सिंहासन पर बैठकर सत्ता में बराबर रह सकते हैं? निश्चित रूप से नहीं।'


     और यही विभाजनकारी सोच अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना का कारण बनी, जिसका उद्धेश्य मुसलामानों के ऐसे केंद्र की स्थापना था, जो शिक्षित जिहादी उत्पन्न कर सकें और वो इस उद्धेश्य में सफल भी रहे। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ही आगे चलकर भारत-विभाजन का कारक बना। 

     

     अलीगढ़ के नागरिक के रूप में, हम 1946 का कल्याणगंज दंगा कैसे भूल सकते हैं ?  जब एएमयू के छात्रों ने अलीगढ़ के महावीरगंज स्थित हनुमान मन्दिर पर हमला किया और उसे ध्वस्त करने में असफल रहने पर मंडी कल्याणगंज में फास्फोरस डालकर आग लगा दी।

     आज कश्मीर में इस्लामिक जिहाद का जो वर्तमान स्वरूप विद्यमान है, उसका मुख्य कारण इस विश्वविद्यालय के छात्र रहे शेख अब्दुल्ला और इस विश्वविद्यालय छात्रों की प्रमुख भूमिका है।

  

      अलीगढ़ में 1950, 1952, 1957, 1971, 1978 और उसके बाद जितने भी साम्प्रदायिक उपद्रव हुए उनमें इस विश्वविद्यालय की सदैव निंदनीय भूमिका रहीं है, इसके अतिरिक्त दादरी रेलवे स्टेशन पर एएमयू छात्रों का उपद्रव हो, इंटेलिजेंस अधिकारी को प्रताड़ित करने की घटना हो, एएमयू परिसर में एस पी सिटी की पिटाई की घटना हो या CAA आंदोलन के दौरान प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस पर हमला हो अथवा हिन्दू छात्रों से जबरदस्ती रोज़ा रखवाने का मामला हो। इस विश्वविद्यालय की हिंसक जिहादी प्रवृत्ति सदैव उजागर होती रही है। 

      एएमयू परिसर में परस्पर गोलीबारी मारपीट आदि का सिलसिला तो अनवरत है ही , महत्वपूर्ण यह है कि इस्लाम से सम्बन्धित विश्वभर में कहीं कोई घटना हो उसकी प्रतिक्रिया एएमयू परिसर में होना अनिवार्य है । 

और यह सब शांति के मज़हब और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर होता है।

   किन्तु जब 2012 में तालिबानियों ने ल़डकियों की शिक्षा के लिए संघर्षरत मलाला युसुफजयी को गोली मारी, तब इस विश्वविद्यालय में मलाला के समर्थन में कोई आवाज़ नहीं उठी, ना ही यहाँ कभी रसखान - रहीम - कबीर के सम्बन्ध में कोई कार्यक्रम होते हैं, यहाँ भारत के यशस्वी राष्ट्रपति मिसाइल मैन अब्दुल कलाम आजाद को कभी याद किया जाता हो, स्मरणीय नहीं। 

क्या इतना पर्याप्त नहीं कि हम इस विश्वविद्यालय के मूल चरित्र को समझ सकें। 


     इस विश्वविद्यालय की सारी वास्तविकताओं को जानकर भी सभी राजनैतिक दल ने इसके असंवैधानिक अल्पसंख्यक स्वरुप को सदैव बरकरार रखा और माननीय उच्चतम न्यायालय में इस सम्बन्ध में किए निर्णय को ना बाहर आने दिया - ना अनुपालना कराई। एक आशा नरेंद्र मोदी सरकार से थी, तो यह भाजपाई कॉंग्रेसीयों के बड़े भाई ही निकले।

      बहुत बड़ा आश्चर्य यह भी है कि देश भर में 'जय भीम - जय मीम' के अलमबरदार एएमयू में संवैधानिक आरक्षण के नाम पर मुँह में दही जमा कर बैठे है, संघी और भाजपाई भी।

     देश भर के राष्ट्रवादी विगत 75 वर्षों से इस आशा में बैठे थे, कभी इस देश में राष्ट्रवादी सरकार बनेगी और इस कालिया नाग का मर्दन करेगी, किन्तु वह यह भूल बैठे थे कि वह द्वापर युग की घटना थी, कलयुग में एएमयू जैसे अजगरों को राजकोषीय संपदा से पोषित किया जाता है, उनका मर्दन नहीं किया जाता।

    

     यूँ तो देश में बहुत सारे राष्ट्र विरोधी सनातन विरोधी बिच्छू नाग अजगर पल रहे हैं,  किन्तु यह नहीं पता था कि दिल्ली की गद्दी पर बैठे द्वारिकाधीश भी एएमयू ऐसे अजगरों के मित्र ही निकलेंगे।

(लेखक~ अशोक चौधरी अध्यक्ष - आहूति)

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