अलीगढ मीडिया डिजिटल, डेस्क| किसी भी रिश्ते को बिना सहमती के खींचना एक बोझ होता है जो आगे चलकर किसी क्राइम का कारण बनता है इसलिए अगर पति या पत्नी में से कोई रिश्ते को आगे चलाने के लिए सहमत न हो तो तलाक लेकर दोनों को अलग हो जाना चाहिए. लेकिन कई बार पत्नी तलाक के लिए राज़ी नहीं होती और पति को ज़िन्दगी को नरक बनाये रहती है तो ऐसे ही बेचारे पतियों के लिए है आज का ये आर्टिकल.
१. धारा thirteen (1) तलाक: सबसे पहले आप धारा thirteen (1) में केस करते है. जिसमे तलाक के 15 आधार होते है जिसमे से पति के पास सिर्फ eleven आधार है और पत्नी के पास अलग से four तलाक अधिकार और भी है. आप इनमे से किसी भी एक आधार पर तलाक के लिए केस फाइल कर सकते है जिसमे दूसरी पार्टी को नोटिस भेजा जायेगा:
जारता (Adultery)
क्रूरता (Cruelty)
अभित्याग (Abandonment)
धर्म-परिवर्तन (Religion change)
मस्तिष्क विकृत्त्ता (Encephalopathy)
कोढ़ (Leprosy)
रतिजन्य रोग (Venereal disease)
संसार परित्याग (World abandonment)
प्रकल्पित मृत्यु (Presumed death)
न्यायिक प्रथक्करण (Judicial separation)
दांपत्य अधिकारों के पुनर्स्थापन की आज्ञप्ति का पालन न करना
2. धारा 9 दाम्पत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन (हिन्दू मैरिज एक्ट): अगर आपको लगता है की आपकी पत्नी साधारण तलाक के केस से नही मानेगी या फिर आप केस नही जीत सकते है या फिर आपके पास अपनी पत्नी के खिलाफ कोई ठोस सबूत नही है, जिससे की आपको लगे की आप केस जीत सकते है तो ऐसे में आप इस धारा 9 दाम्पत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन (हिन्दू मैरिज एक्ट ) का सहारा ले सकते है इसको इंग्लिश में restitution of conjugal rights कहते है
इसमें आप अपनी पत्नी को वापस घर लाने का केस करते है. जाहिर है वो ऐसे तो आएगी नही. तो आप अगर ये साबित कर देते है की मैंने किसी भी प्रकार की गलती नही की है और शादी होने के कारण, कानूनन मेरी पत्नी को मेरे साथ रहनी चाहिए और मुझे दाम्पत्य सुख देना चाहिए जो वो नही दे रही है तो ऐसे में अगर इस आधार पर ये डिक्री आपको मिल जाती है, और तब भी आपकी पत्नी आपके पास आकर नही रहती है तो आपको इस डिक्री के पास होने के बाद अपनी पत्नी से तलाक का क़ानूनी अधिकार मिल जाता है. जिससे की आप आसानी से इस आधार पर अपनी पत्नी के तलाक ले सकते है.
3. धारा 10 न्यायिक पर्थ्करण (हिन्दू मैरिज एक्ट): इसको हम इंग्लिश में जुडिशल सप्रेशन कहते है यानी की क़ानूनी रूप से एक जगह रहते हुए, एक छत के निचे रहते हुए भी पति पत्नी की तरह नही रहना.
जब आपकी पत्नी आपके साथ रहती है और आपसे खर्चा भी ले रही है और साथ में रहते हुए तलाक लेना सबसे मुश्किल होता है क्यूंकि ऐसे में कोर्ट का रुख पत्नी की तरफ रहता है ऐसे में कोर्ट सोचता है की पत्नी तो घर बसाना चाहती है लेकिन पति ही नही चाहता है. तो ऐसे में आपको ये केस करना चाहिए
4. घरेलू हिंसा का केस : अगर आपकी माँ या बहन भी आपके साथ रहती है तो आप अपनी माँ या बहन से ये केस अपनी पत्नी पर करवा सकते है. घरेलू हिंसा का केस पत्नी ही नही आपकी माँ और बहन भी ये केस आपकी पत्नी पर कर सकती है. जैसे आपकी पत्नी उस घर में बहु है वैसे ही आपकी माँ भी उस घर में बहु है.
घरेलू हिंसा केस से मतलब है की एक घर में रहने वाले लोग आपस में ये केस कर सकते है. ये केस सिर्फ महिला ही कर सकती है, पुरुष को कोई आधिकार नही है. तो ऐसे में आप अपनी माँ या बहन से ये केस अपनी पत्नी पर करवा सकते है की उसने भी उसे परेशान किया है/ गाली दी है /पिता है खाना नही दिया या फिर ताने दिए है. इन आधारों पर ये केस आप करवा सकते है. इससे आपकी पत्नी हतास हो जाएगी और दबाव में आ जाएगी
5. दहेज प्रतिरोधी अधिनियम: अगर आपकी पत्नी ने कही पर भी ये लिखा है की शादी से पहले और बाद में उन्होंने आपकी मांग पर दहेज दिया है तो आप इस धारा में उन्हें 5 साल तक की सजा और और 15 हजार से लेकर दहेज के सामान तक की वैल्यू का पैसे का जुरमाना करवा सकते है. ये धारा कहती है की दहेज देना और लेना दोनों ही जुर्म है. इसमें आपको ये नही कहना है की मैंने दहेज लिया है. लेकिन आपकी पत्नी का और उसके परिवार का ये कहना ही काफी है की उन्होंने दहेज दिया है और इतना कहना ही उन्हें जेल पहुचा सकता है.
#6.मानहानि धारा five hundred IPC: आपने देखा होगा की पत्निया केस करने के बाद न्यूज़ पेपर में निकलवा देती है और फिर उसकी कटिंग कोर्ट में दिखा कर कोर्ट को मिडिया ट्रायल का रूप दिखाकर अपने पक्ष में करने की कोशिश करती है. इसके लिए और इस प्रकार के दबाव को कोर्ट रोकने के लिए, आगे से कोई न्यूज़ पेपर ऐसी खबर नही छापे और अपनी पत्नी पर समाजिक दबाव बनाने के लिए आप को धारा five hundred IPC मानहानि मे केस करना चाहिए, ताकि आपकी पत्नी और न्यूज़ पेपर वाले दबाव में आ जाए इस धारा में two साल तक की सजा और जुर्माना दोनों होते है
पत्नी के करीबी सपोर्टर पर केस: कोई भी स्त्री बिना किसी सहारे के केस नही कर सकती है. उसे या तो अपने मायके का सहारा होता है या फिर किसी रिश्तेदार का जो की पुलिस में हो या फिर पॉलिटिक्स में या फिर उसके परिवार में कोई उसका अपना किसी अच्छे पद पर या फिर अच्छी कंडीशन में हो.
जैसे की आपने सुना होगा की पेड़ को काटना है तो पहले उसकी जड को काटे, टहनियां काटने से कुछ नही होता है. ऐसे में हमे उस व्यक्ति पर केस करना चाहिए या फिर उसकी शिकायत करके उसे उससे दूर करना चाहिए अगर आप को लगे की कोई आप के खिलाफ जा सकता है तो उस को भी अपने केस में पार्टी या फॉर्मर पार्टी बना सकते है. इससे वो व्यक्ति आपके केस में अपनी गवाही से केस को कमजोर नही कर पायेगा (फॉर्मर पार्टी वे लोग होते है जिनका केस में नाम तो होता है पर उनको कोर्ट की तरफ से समन इशू नही होता है) इससे ये होगा की आपकी पत्नी कमजोर पड़ जायेगी और हारकर आपको तलाक दे देगी.