अलीगढ मीडिया डिजिटल, अलीगढ़ | अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के भाषा विज्ञान विभाग के अध्यक्ष और भारतीय भाषा विज्ञान सोसायटी के अध्यक्ष प्रोफेसर एम.जे. वारसी ने कश्मीर विश्वविद्यालय में आयोजित भारतीय भाषा विज्ञान सोसायटी (आईसीओएलएसआई-46) के 46वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में ‘21वीं सदी में भाषा विज्ञानरू चुनौतियां और अवसर’ विषय पर उद्घाटन भाषण देते हुए कहा कि भाषा विज्ञान हमारे समय के कुछ सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों, भाषा संरक्षण और पुनरोद्धार से लेकर भाषा, प्रौद्योगिकी और समाज के अंतर्संबंधों को संबोधित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
उन्होंने कहा कि भारत अपनी अद्वितीय भाषाई विविधता के साथ हमारे क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार के लिए उपजाऊ जमीन प्रदान करता रहा है। फिर भी, इस विविधता के साथ चुनौतियां भी आती हैं, जिनके लिए हमें रचनात्मक और सहयोगात्मक रूप से सोचने की आवश्यकता होती है कि हम अपने समुदायों की भाषाओं को कैसे संरक्षित और बढ़ावा दे सकते हैं, साथ ही वैश्विक दुनिया में उनकी प्रासंगिकता सुनिश्चित कर सकते हैं।
एनईपी-2020 की प्रासंगिकता का उल्लेख करते हुए, प्रोफेसर वारसी ने जोर देकर कहा कि एनईपी का कार्यान्वयन देश के शैक्षिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है, जिसका उद्देश्य बहुभाषिकता पर जोर देने के साथ तेजी से बदलती वैश्विक जरूरतों को पूरा करने के लिए शैक्षिक प्रणाली को बदलना है।
प्रोफेसर वारसी ने कहा कि जहां भारत में भाषा विज्ञान ने महत्वपूर्ण प्रगति की है, वहीं प्रौद्योगिकी, विशेष रूप से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग और नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (एनएलपी) का तेजी से विकास भाषा विज्ञान के लिए रोमांचक संभावनाएं प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि हमें अंतःविषयी दृष्टिकोणों को प्रोत्साहित करना चाहिए, भाषा विज्ञान को प्रौद्योगिकी, समाजशास्त्र और संज्ञानात्मक विज्ञान जैसे क्षेत्रों के साथ मिश्रित करना चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भाषा का अध्ययन तेजी से परस्पर जुड़ी दुनिया में प्रासंगिक बना रहे।
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