अलीगढ़ मीडिया डिजिटल, अलीगढ़|ऑपरेशन जागृति-4 अभियान के अंतर्गत महिलाओं एवं बालिकाओं को उनके अधिकारों एवं सुरक्षा के बारे में जानकारी देकर जागरूक किया गया|जिसमें बताया गया कि किसी के बहकावें में आकर झूठे मुकदमें दर्ज न कराएं|दोस्ती, लगाव या आकर्षण में कोई गलत कदम न उठायें| साइबर फ्रॉड से बचें, इसके अलाबा नशा एक सामाजिक अभिषाप है, नशीले पदार्थों का सेवन न करें, इसकी जागरूकता फैलाई गई|
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक संजीव सुमन के निर्देशन में ऑपरेशन जागृति अभियान के क्रम में थाना प्रभारियों, महिला पुलिसकार्मिकों द्वारा महिला एवं बालिकाओं को ऑपरेशन जागृति-4 के उद्देश्यों के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्रदान की जा रही है और अभियान का जन-जन तक प्रचार प्रसार करने की अपील की गई।
अपर पुलिस महानिदेशक आगरा जोन आगरा द्वारा जोन स्तर पर महिलाओं / बालिकाओं की सुरक्षा / सशक्तिकरण / संवाद / परामर्श एवं विभिन्न प्रकार के अपराधों के बारे में जागरूकता पैदा करने हेतु जोन स्तर पर ऑपरेशन जागृति अभियान की शुरूआत की गयी थी। पिछले चरणों में ऑपरेशन जागृति के तहत चार प्रमुख मुददों पर चर्चा की गई थी जिसके अंतर्गत महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा व उनको मोहरा बनाकर झूठी शिकायत, प्रेम संबंधों में किशोर व किशोरियों का घर से पलायन व साइबर हिंसा व उससे बचाव से संबंधित विषयों को चुना गया था।
इस बार ऑपरेशन जागृति-4 के 06 मुख्य उद्देश्य इस प्रकार है-
1. महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध की रोकथाम, उनकी सुरक्षा, समानता व अधिकार पर चर्चा
2. महिलाओं को मोहरा बनाकर झूठे केस दायर करना
3. किशोरावस्था में प्रेम प्रसंगों के कारण घर से पलायन
4. साइबर हिंसा व सुरक्षा
5. नशे के दुष्परिणामों से बचाव
6. पारिवारिक विघटन (Marital Discord) के मामलों पर चर्चा
प्रशिक्षित बीट पुलिस अधिकारी, थाना प्रभारी/ बीट इंचार्ज द्वारा अपने – अपने क्षेत्रों के ग्राम पंचायत स्तर पर गाँवों मौहल्ले में महिलाओं एवं किशोरियों के साथ समन्वय करते हुए विभिन्न कार्यक्रम, नुक्कड़ सभा आयोजित कर जागृति के उद्देश्यों के प्रति जागरुक किया जा रहा है । बीट पुलिस अधिकारी द्वारा ग्राम पंचायत व विद्यालयों में भ्रमण कर छात्राओं को जागरुक किया जा रहा है।
महिलाओं/ बालिकाओं के प्रति होने वाली हिंसा-मुख्यतः महिलाओं या बालिकाओं के प्रति होने वाली हिंसा 4 प्रकार की होती है, शारिरिक, मौखिक या भावनात्मक (मानसिक), लैंगिक और आर्थिक हिंसा।
शारिरिक हिंसा में मारपीट करना, थप्पड मारना, धक्का देना या किसी भी प्रकार से सामने वाले को शारिरिक चोट पहुँचाना शामिल हैं। मानसिक या भावनात्मक हिंसा में किसी बात को लेकर कलंकित या अपमानित करना, अपनी बात मनवाने का दबाव बनाना या किसी से मिलने से रोकना आदि शामिल है। साथ ही जब हम बात करते हैं लैंगिक या यौन हिंसा की तो इसमें किसी महिला या बालिका के साथ दबाव डालकर यौन संबंध बनाना, यौन दुव्यवहार करना, अश्लील बातें करना या चित्र दिखाना आदि शामिल है। और इसी तरह से आर्थिक हिंसा में उनके खान-पान, शिक्षा, स्वास्थ्य या अन्य जरूरतों * को पूरा करने हेतु आवश्यक आर्थिक समर्थन न देना आदि शामिल हैं।
प्रायः देखा जाता है कि कि यदि किसी महिला के साथ कोई छेड़छाड़, यौन हिंसा या कोई अन्य अपराध होता है तो ऐसे में उस महिला या लड़की को एक हीन दृष्टि से देखा जाता है। जबकि उसके साथ अपराध किसी और ने किया होता है। यही नहीं कभी-कभी तो माँ-बाप, परिवार, रिश्तेदार होने के बावजूद भी उसे स्वीकारने से कतराते है, जो सरासर गलत है। ऐसे में समाज को उस महिला या लड़की का सहारा बनकर हर सम्भव सहायता करनी चाहिए । क्योंकि वह महिला या लड़की स्वयं में गहरे मानसिक व शारिरिक सदमे, पीड़ा और तनाव से गुजर रही होती है। ऐसे में उन्हें आपके सहयोग और समर्थन की जरूरत है जिससे उन्हें तनाव और पीड़ा से बाहर निकलने में मदद की जा सके, न की आपके तिरस्कार, तानों और लाछनों की।
महिलाओं को मोहरा बनाकर झूठे केस दायर कराना-
संपत्ति संबंधी विवादों में या आपसी दुश्मनी में, ईर्ष्या या जातिगत अथवा सामाजिक भेदभाव सहित अन्य छोटे मोटे मामलों में महिलाओं के नाम पर या महिलाओं को आगे करके झूठे मुकदमों में एफ0 आई0आर0 दर्ज करा दी जाती हैं । बहुत बार देखा गया है कि क्षेत्र में दो पक्षों में मकान, दुकान, खेत या भूमि के बंटवारे का विवाद होता है. लेकिन लोग सोचते हैं कि अगर महिला की तरफ से मुकदमा लिखवा दिया जाएगा तो पुलिस द्वारा ज्यादा अच्छी और प्रभावी कार्यवाही की जाएगी। यह बात सच है कि महिलाओं पर होने वाले अपराधों में कड़ी सजा और गिरफ्तारी के प्रावधान होते हैं इसलिए कुछ लोग विपक्षी पर अनावश्यक दबाव बनाने हेतु महिला को आगे करते हुये झूठे मुकदमे दर्ज करा देते हैं ।
झूठे प्रकरण, हमारी कानूनी प्रणाली को कमजोर बनाते हैं साथ ही जनमानस में कानून के प्रति अविश्वास पैदा करते हैं। साथ ही साथ झूठे प्रकरणों की संख्या अधिक होने के कारण न्याय व्यवस्था पर अतिरिक्त बोझ आता है और वास्तविक प्रकरणों के निवारण में अधिक समय लगता है। कई बार तो इन झूठे प्रकरणों की वजह से कई निर्दोषों के प्रकरणों की सुनवाई का नंबर वर्षों तक नहीं आ पाता। निर्दोष व्यक्ति के पूरे जीवन पर इसका बुरा असर पड़ता है और आपसी रंजिश और बढ़ती चली जाती है।
यह भी जानना जरूरी है कि यदि यह कोई झूठा प्रकरण दर्ज कराता है तो दर्ज कराने वाले पर भी आपराधिक कार्यवाही हो सकती है।
किशोरावस्था में प्रेम संबंधों के कारण घर से पलायन
यह एक गम्भीर मुद्दा है युवाओं के बीच आपसी प्रेम संबंधों के कारण माता-पिता/घरों/परिवारों को बिना बताये कहीं निकल जाते हैं । यह मुद्दा गम्भीर इसलिए हैं कि ऐसे मामलों में शामिल सभी पक्ष चाहे वो लड़का हो या लडकी, वयस्क हो या बच्चा, साथ ही उनके माता-पिता, दोस्तों, और यहाँ तक कि समाज, सभी को इसके दुष्परिणमों से गुजरना ही पड़ता है।
यदि पुलिस में दर्ज इस प्रकार के मामलों की बात करें तो अधिकांश मामलों में या तो लड़का और लड़की दोनो नाबालिग होते हैं या लड़की नाबालिग और लड़का बालिग। युवाओं के बीच दोस्ती, लगाव या आकर्षण असामान्य है * अक्सर परिवारों द्वारा ऐसी दोस्ती, लगाव या आकर्षण का विरोध किया जाता है, परिणामस्वरूप युवा अपने घरों और परिवारों को छोड़ देते हैं या घर से निकल जाते हैं उनके निकल जाने के बाद परिवारों द्वारा अपहरण सहित यौन हिंसा आदि के मुकदमे दर्ज कराये जाते हैं और अधिकांश प्रकरणों में किशोरों को अभियुक्त और किशोरियों को पीड़ित मान कर कानूनी कार्यवाही की जाती है।
दोस्ती, लगाव या आकर्षण में उठाया गया एक कदम, युवाओं पर भारी मानसिक व भावनात्मक दबाव को बढ़ता है। कई बार वे असामाजिक तत्वों के शिकार भी बन जाते हैं। किशोर व किशोरियों की न सिर्फ शिक्षा प्रभावित होती है बल्कि उनके स्वास्थ्य और भविष्य पर भी इसका नाकारात्मक प्रभाव पड़ता है। पुनः मिलने पर कानूनी प्रक्रिया के दौरान उन्हें न सिर्फ एक दूसरे से अलग रहना पड़ता है, बल्कि कई मामलों में उनके परिवार भी उन्हें नहीं स्वीकारते और उन्हें प्रकरण के विचाराधीन होने की अवधि तक सरकारी गृहों में रहना पड़ता है। यही नहीं यदि दोनों के मध्य यौन संबंध बनते हैं तो और भी गंभीर परिणाम होते हैं, हमारे देश के कानून में यदि किसी नाबालिक बालक या बालिका से उसकी सहमति से भी यौन संबंध बनाये जाते हैं तो भी कानून उस सहमति को सहमति नहीं मानता और यह कानूनन अपराध है जिसके लिये कड़ी सजा का प्रावधान हैं।
टीमों द्वारा ऐसे गलत कदमों को उठाने से रोकने हेतु जागरुक किया जा रहा है एवं उन्हें उनके गलत कदमों को उठाने के दुष्परिणामों से भी अवगत कराया जा रहा है ।
साइबर हिंसा व बचाव
बच्चों के पास या बच्चे आपका फोन इस्तेमाल करते हैं, आजकल इससे जुड़े अपराध भी बहुत होते है। महिलाओं और बच्चों को ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है और आजकल Al का जमाना है जिसमें हमारी सतर्कता बहुत ही जरूरी है। बच्चों द्वारा सावधानी के साथ ही सोशल मीडिया या गेमिंग एप आदि का प्रयोग किया जाए । सर्तक रहें, सुरक्षित रहें। कोई अनजान ईमेल, मुफ्त उपहार या नौकरी दिलाने के नाम पर लिंक आदि के माध्यम से अपनी व्यक्तिगत सूचना देने से बचें।
बच्चों द्वारा नशे का सेवन
नशा एक ऐसी बुराई है, जिससे इंसान का अनमोल जीवन समय से पहले ही मौत का शिकार हो जाता है। नशे के लिये समाज में शराब, गाँजा, भांग, अफीम, जर्दा, गुटखा, तम्बाकू और धूम्रपान (बीडी, सिगरेट, हुक्का, चिलम) सहित चरस, स्मैक, कोकीन, ब्राउन शुगर, जैसे घातक मादक पदार्थो व दवाओं का उपयोग किया जा रहा है। इन जहरीले और नशीले पदार्थों के सेवन से व्यक्तियों को शारीरिक, मानसिक, और आर्थिक हानि पहुँचने के साथ ही इससे सामाजिक वातावरण भी प्रदूषित होता है, साथ ही स्वयं और परिवार की सामाजिक स्थिति को भी बहुत नुकसान पहुंचता है। जो इसके चंगुल में फंस गया वह स्वयं तो बर्बाद होता ही है इसके साथ ही उसका परिवार भी बर्बाद हो जाता है।
माता-पिता द्वारा अपने बच्चे के साथ व्यवहार में निम्न बातों का ध्यान रखा जाए-
* अपने बच्चों से खुलकर बातें करें। उनकी बातें धैर्य से सुनें। अपने बच्चों की गतिविधियों और उनके दोस्तों में दिलचस्पी लें।
* समस्याओं के बारे में घर में मिल बैठ कर बातचीत करें।
* बच्चों की समस्याओं के बारे में उनसे बातचीत करें और उन्हें इनको सुलझाने के तरीकों के बारे में बतायें।
आप स्वयं शराब या नशीले पदार्थों का सेवन न करें। इस तरह बच्चों के लिए उदाहरण प्रस्तुत करें।
* घर में इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं की पूरी जानकारी रखें।
* नशीले पदार्थों के बारे में अधिक से अधिक जानकारी हासिल करें और इनके दुरूपयोग के बारे में भी सावधान रहें।
👉पारिवारिक विघटन या वैवाहिक जीवन में होने वाली समस्यायें, वैवाहिक विघटन के निम्न कारण होते हैं जैसे-
1. संचार की कमी (Lack of Communication)- पति-पत्नी एक-दूसरे से खुलकर बात नहीं करते। अपनी भावनाएँ, जरूरतें, और अपेक्षाएँ छिपा लेते हैं।
2. अवास्तविक अपेक्षाएँ (Unrealistic Expectations) शादी से पहले लोग सोचते हैं कि उनका पार्टनर परफेक्ट होगा, लेकिन जब हकीकत सामने आती है, तो निराशा होती है।
3. वित्तीय समस्याएँ (Financial Issues)- पैसों को लेकर तनाव भी रिश्तों में खटास लाता है।
4. परिवार का दखल (Interference from Family) सास-ससुर या अन्य रिश्तेदारों का जरूरत से ज्यादा दखल भी विवाद पैदा करता है।
5. समय की कमी (Lack of Time) आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में पति-पत्नी एक-दूसरे को समय नहीं दे पाते।
6. विश्वास की कमी (Lack of Trust) शक और असुरक्षा की भावना रिश्ते को कमजोर करती है।
👉उपरोक्त विघटन को दूर करने हेतु कुछ व्यावहारिक समाधान बताये गये जिन्हें अपनाकर वैवाहिक विघटनों से बचा जा सकता है-
* हर दिन कुछ समय निकालकर एक-दूसरे से बात करें। अपनी भावनाएँ, ख्वाहिशें, और परेशानियों शेयर करें। सुनने का धैर्य रखें। • अपने पार्टनर की बात को बिना जज किए समझें।
* अपने पार्टनर की पसंद-नापसंद, उनकी राय, और उनकी भावनाओं का सम्मान करें।
* छोटी-छोटी बातों पर बहस करने से बचें।
* यह समझें कि कोई भी इंसान परफेक्ट नहीं होता। अपने पार्टनर को उनकी खामियों के साथ स्वीकार करें।
* शादी से पहले एक-दूसरे की अपेक्षाओं पर खुलकर बात करें।
* वित्तीय पारदर्शिता बनाए रखें।
* पैसों से जुड़े फैसले मिलकर लें।
* बजट बनाएँ और एक-दूसरे पर पैसों को लेकर शक न करें।
* परिवार के साथ सीमाएँ तय करें।
* सास-ससुर या अन्य रिश्तेदारों के साथ अच्छे संबंध रखें, लेकिन अपने वैवाहिक जीवन में उनकी भूमिका को सीमित करें।
* अगर कोई पारिवारिक विवाद हो, तो उसे शांति से सुलझाएँ।
* साथ में क्वालिटी टाइम बिताएँ, जैसे डिनर डेट, मूवी नाइट, या छोटा सा वॉक।
* एक-दूसरे की हॉबीज में हिस्सा लें।
* अपने पार्टनर पर भरोसा करें और हमेशा सच बोलें।
* अगर कोई गलती हो जाए, तो उसे स्वीकार करें और माफी माँगें।
* अगर रिश्ते में बहुत ज्यादा तनाव हो, तो किसी प्रोफेशनल काउंसलर की मदद लें।
आपरेशन जागृति अभियान की सहायता से महिलाओं / बालिकाओं के प्रति अपराधों में कमी आयेगी, गलत सूचनाएं दर्ज करने मे भी कमी आयेगी, कांउसलिंग और रिपोर्टिंग सिस्टम मजबूत होगा, पलायन सम्बन्धी मामलों में भी कमी आयेगी ।
इन सभी परिस्थितियों में सामाजिक जागरूकता, संवाद शिक्षा और परामर्श (counselling/support) की बेहद आवश्यकता है ताकि महिलायें एवं बालिकायें इस प्रकार के षडयंत्रों का शिकार न बने, भावनाओं में बहकर अपना जीवन बर्वाद न करें और उन्हें मोहरा न बनाया जाए, यदि वास्तव में उनके साथ किसी प्रकार का अपराध घटित होता है तो वह सच बोलने की हिम्मत रख पाये और विधिक कार्यवाही के साथ-साथ उनको counseling/support मिल सके।